प्रकृति को संवारने के लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है। प्रकृति अपना ध्यान खुद रखना जानती है। जरूरत है तो बस इस बात की कि विकास की अंधी दौड़ में मगन इंसान अपना दायरा समझ ले। किसी भी प्राकृतिक संसाधन में सीमा से अधिक छेड़छाड़ न किया जाए।
विकास बनाम विनाश की बहस के बीच यह नियंत्रण हमेशा चुनौती रहा है, लेकिन कोरोनकाल (वर्ष 2020) में जब चौतरफा लाकडाउन, लोग घरों में कैद थे और कल-कारखाने बंद थे, तो प्रकृति को अपना ध्यान रखने का भी मौका मिल गया। यकीन मानिए, तब हमारी गंगा नदी समेत, भागीरथी (गंगा का मुख्य रूप), अलकनंदा और टौंस नदी अपने 28 साल पुराने स्वच्छ स्वरूप में लौट आई थीं।