उपनल कर्मचारियों को लेकर राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष पुनर्विचार याचिका खारिज हो गई है।
सरकार ने याचिका हाईकोर्ट के कुंदन सिंह बनाम राज्य सरकार के उस निर्णय के खिलाफ डाली थी, जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार को उपनल कर्मियों को नियमित करने के लिए नियमावली बनाने और तब तक उन्हें समान कार्य का समान वेतन देने के निर्देश दिए थे।
याचिका खारिज होने से प्रदेश के विभिन्न विभागों में कार्यरत तकरीबन 25 हजार उपनल कर्मियों में नियमितीकरण की आस बलवती हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अब सरकार विधिक परीक्षण करा रही है।
10 वर्ष से अधिक समय से विभागों में कार्यरत
प्रदेश में इस समय विभिन्न विभागों में उपनल (उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड) के जरिये कर्मचारी तैनात है। ये कर्मचारी सुरक्षा गार्ड, परिचारक, लैब तकनीशियन, कंप्यूटर आपरेटर, लिपिक व अधिकारी वर्ग के रिक्त पदों के सापेक्ष अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें कई कर्मचारी 10 वर्ष से अधिक समय से विभागों में कार्य कर रहे हैं।
नियमितीकरण की मांग को लेकर कुछ उपनल कार्मिकों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। वर्ष 2018 में इस तरह की दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए थे कि वह याचिकाकर्ता उपनल कर्मियों को नियमित करने के लिए नियमावली बनाए और तब तक उन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान करे। इसके लिए समय सीमा भी तय की गई थी।
निर्णय के खिलाफ प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील की, लेकिन यह खारिज हो गई। इस पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।
इसमें स्पष्ट किया गया है कि उपनल कर्मियों की नियुक्तियां स्वीकृत रिक्त पदों के सापेक्ष की गई हैं। कर्मचारी इन पदों पर 10 वर्ष से अधिक समय से कार्य कर रहे हैं। सभी कार्मिक न्यूनतम अर्हता पूरी कर रहे हैं। साथ ही सरकार ने 10 वर्ष तक सेवा करने वालों को नियमित करने के लिए नियम बनाए हुए हैं।