उत्तराखंड – ऊंचे पर्वतों और घाटियों के बीच स्थित तुंगनाथ मंदिर आज श्रद्धा और भक्ति के अद्भुत संगम का साक्षी बना। गुरुवार सुबह 11:30 बजे, वैदिक मंत्रों की मधुर ध्वनि और फूलों की खुशबू के बीच, भगवान श्री तुंगनाथ जी के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए।
कपाट बंद होते ही मंदिर परिसर में जयघोषों की गूंज फैल गई। श्रद्धालु जैसे ही चल विग्रह डोली के दर्शन करने लगे, उनका हृदय आनंद और भावनाओं से भर गया। डोली ने मंदिर प्रांगण की परिक्रमा करते हुए, ढोल-नगाड़ों और शंखध्वनि के बीच, पहला पड़ाव चोपता के लिए प्रस्थान किया।
मंदिर में सुबह 10:30 बजे पूजा-अर्चना, हवन और भोग यज्ञ संपन्न हुए। इस दौरान श्रद्धालु भगवान के स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कर पुण्य अर्जित करते रहे। 11:30 बजे शुभ मुहूर्त में कपाट बंद कर दिए गए और भगवान को समाधि में स्थापित किया गया।
मंदिर समिति के अनुसार, इस वर्ष लगभग डेढ़ लाख श्रद्धालुओं ने भगवान श्री तुंगनाथ जी के दर्शन किए। डोली का अगला पड़ाव शुक्रवार को भनकुन और शनिवार को मक्कूमठ होगा, जहां शीतकालीन पूजा-अर्चना प्रारंभ की जाएगी।
इस मौके पर मंदिर समिति के अधिकारी, पुजारी और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। जैसे ही डोली ने चोपता की ओर कदम बढ़ाया, वातावरण में केवल भक्ति और उत्साह का ही ज्वार था। श्रद्धालुओं ने अपने हाथ जोड़े और जयघोष करते हुए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त किया।
इस शीतकालीन यात्रा का उद्देश्य न केवल धार्मिक अनुष्ठान पूरा करना है, बल्कि अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को भगवान श्री तुंगनाथ जी की दिव्यता और आशीर्वाद का अनुभव कराना भी है।
