नेपाल में इन दिनों जो हो रहा है, वह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं है — यह आशाओं और सत्ता के बीच टकराव है। युवा वर्ग अब सवाल कर रहा है: क्या यह वही लोकतंत्र है, जिसके लिए हमारे माता-पिता ने आंदोलन किए थे?
जब सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक किया, तो यह बस एक तकनीकी फैसला नहीं था — यह युवा पीढ़ी की आवाज़ छीनने की कोशिश थी। सरकार का तर्क था कि सोशल मीडिया पर अफवाहें फैल रही थीं। लेकिन सच्चाई यह थी कि यही मंच युवाओं के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ एक खुला मंच बन चुका था। Instagram और TikTok पर सरकारी ठेकों में घोटालों की मीम्स वायरल हो रही थीं। Reddit और Discord चैनलों पर नीति विश्लेषण हो रहा था। सरकार को यह पसंद नहीं आया।
21 साल की अंजु महर्जन, जो ललितपुर की छात्रा हैं, कहती हैं, कि “हम शासन नहीं, भागीदारी चाहते हैं”, “हम कोई राजनीतिक एजेंडा लेकर नहीं आए हैं। हम सिर्फ इतना कह रहे हैं कि सरकार जनता की है, सत्ता की नहीं।”
प्रदर्शन में हिस्सा लेने वालों में कई स्कूल के छात्र, कामकाजी युवा, तकनीकी विशेषज्ञ और शिक्षक शामिल थे। कोई पार्टी का झंडा नहीं, कोई नेता का नाम नहीं — सिर्फ “हामी नेपाल”।
ओली सरकार पर पहले ही जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और प्रशासनिक संस्थाओं को निजी नियंत्रण में लेने के आरोप थे। CIAA (भ्रष्टाचार जांच आयोग) के प्रमुख पद पर अपने वफादार अधिकारी की नियुक्ति ने इस अविश्वास को और गहरा किया। सोशल मीडिया प्रतिबंध के बाद जब सरकार ने गोली चलवाई और दर्जनों युवा मारे गए, तो देश फट पड़ा।
