ग़ाज़ा शहर अब केवल एक भूगोलिक नाम भर रह गया है। एक ऐसा नाम, जो कभी समृद्धि, संस्कृति और सामुदायिक जीवन का प्रतीक था, लेकिन अब सिर्फ मलबे, मौत और मजबूरी का पर्याय बन चुका है। इजरायली सेना की नवीनतम कार्रवाई में इस ऐतिहासिक शहर को पूरी तरह खाली कराया जा रहा है। मकसद हमास को जड़ से उखाड़ना बताया जा रहा है, लेकिन इसके साथ ही एक ज़िंदा शहर को हमेशा के लिए दफ़्न किया जा रहा है।
जहां कभी बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी, बाजारों में रौनक होती थी, वहीं अब सिर्फ सन्नाटा और सायरन की आवाज़ें हैं।
45 वर्ग किलोमीटर में फैले ग़ाज़ा शहर की 8 लाख से अधिक आबादी कभी बहुमंजिला अपार्टमेंटों, रंगीन बाजारों और समुद्र किनारे की चहल-पहल में जीती थी। अब वहां बस टूटे मकान, उजड़े स्कूल और बिलखते लोग बचे हैं।
7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले के जवाब में जो सैन्य अभियान शुरू हुआ था, वह अब ग़ाज़ा शहर के अस्तित्व को लीलने तक पहुंच गया है। यह सिर्फ जवाबी कार्रवाई नहीं रह गई — यह एक ऐसे शहर को नक्शे से मिटा देने की प्रक्रिया बन चुकी है, जिसने सदियों तक इतिहास, धर्म और संस्कृति को जिया था।
तीन साल पहले तक भी ग़ाज़ा शहर में ज़िंदगी थी — मुश्किलों भरी, लेकिन जिंदादिल। ईद के मैदानों में सामूहिक नमाजें, शादी समारोहों में महिलाओं के पारंपरिक गीत, बाजारों की चहल-पहल और मिठाइयों की खुशबू, और समंदर किनारे बिताए पलों की ठंडी हवा — अब ये सब कुछ स्मृतियों में बदल गया है। शिक्षा की लौ भी बुझने लगी है, ग़ाज़ा शहर के स्कूल, जिनमें हज़ारों बच्चे पढ़ा करते थे, अब या तो मलबे में दबे हैं या खाली पड़े हैं।
98% पुरुष और 93% महिलाएं साक्षर थे इस शहर में — यह आंकड़े अब खंडहरों के नीचे दबे प्रमाण बन गए हैं। यहां की यूनिफॉर्म पहन कर स्कूल जाते बच्चों की तस्वीरें अब सिर्फ पुराने फ़ोटो एलबम में बची हैं।
शेजाया, जो संकरी गलियों और सीमेंट के मकानों के लिए जाना जाता था, अब ये मोहल्ले ख़त्म हो रहे हैं, और कुछ तो शायद अस्तित्वहीन हो चुके हैं। अस्थायी संघर्ष विराम के बाद लौटे लोग अब दोबारा जान बचाकर भाग रहे हैं।
इजरायली टैंकों के साए में, लोग बिस्तर नहीं, सिर्फ दस्तावेज और बच्चों को उठाकर भागते हैं। किसी को नहीं मालूम कि वे कहां जाएंगे, और कब लौट पाएंगे — या लौट भी पाएंगे या नहीं।
ग़ाज़ा कोई एक शहर नहीं, यह हजारों साल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा था।
- मिस्र से लेकर रोम तक के नक्शों में दर्ज,
- बंदरगाहों से लेकर पाक परंपराओं तक,
- और हस्तशिल्प से लेकर धार्मिक आस्थाओं तक —
अब यह सब ध्वस्त होते भवनों और पलायन करते परिवारों के बीच दम तोड़ रहा है।
