उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने और पुरानी टिहरी की ऐतिहासिक परंपरा को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से “श्री रामकृष्ण लीला समिति टिहरी 1952, देहरादून” द्वारा आयोजित रामलीला महोत्सव 2025 का आयोजन रेसकोर्स स्थित श्री गुरु नानक मैदान में भव्य रूप से जारी है।
तीसरे दिन की लीला को ‘राज्य आंदोलनकारी सम्मान दिवस’ के रूप में समर्पित किया गया, जिसमें उत्तराखंड राज्य निर्माण में बलिदान देने वाले वीरों को श्रद्धांजलि दी गई।
टिहरी की लीला, देहरादून की धरती पर फिर जीवंत
समिति अध्यक्ष अभिनव थापर ने कहा कि “टिहरी की रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान और उत्तराखंड के इतिहास का जीवंत प्रतीक है।”
उन्होंने बताया कि 1952 में टिहरी में शुरू हुई यह लीला, टिहरी बांध निर्माण के चलते जलमग्न हो जाने के बाद अब देहरादून में नई ऊर्जा के साथ आयोजित की जा रही है।
सीता स्वयंवर से लेकर परशुराम संवाद तक, मंच पर छाया पौराणिक वैभव
- तीसरे दिन की लीला में सीता स्वयंवर, धनुष भंग, राम–सीता विवाह, और परशुराम–लक्ष्मण संवाद जैसे प्रमुख प्रसंगों का मंचन हुआ।
- पुष्पवर्षा के साथ राम–सीता विवाह दृश्य ने दर्शकों को दिव्य अनुभूति दी।
- हास्य से भरपूर राजाओं के पात्रों ने माहौल को आनंदमय बना दिया।
- परशुराम और लक्ष्मण संवाद की प्रस्तुति में कलाकारों ने पौराणिक चौपाइयों और भाव-भंगिमा से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
- आधुनिक तकनीक से सजे Laser & Sound Show ने आरती और अन्य धार्मिक दृश्यों को और प्रभावशाली बना दिया।
गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति
कार्यक्रम में मेयर सौरभ थपलियाल, राज्य आंदोलनकारी मंच के अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी, प्रदीप कुकरेती, रामलाल खंडूरी, अमित ओबेरॉय, अमित पंत, गिरीश पैन्यूली, डॉ. नितिन डंगवाल, नीता बहुगुणा, शशि पैन्यूली समेत कई समाजसेवी एवं सांस्कृतिक कार्यकर्ता मौजूद रहे।
75 लाख दर्शकों तक पहुंचेगी रामलीला, पहली बार डिजिटल लाइव टेलीकास्ट
- समिति के अनुसार, इस वर्ष पहली बार रामलीला का मंचन Digital Live Telecast System के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है, जिसे देश-विदेश में 75 लाख से अधिक दर्शकों द्वारा देखे जाने की उम्मीद है।
2024 में आयोजित रामलीला को 55 लाख दर्शकों ने देखा था। - मेले, कलश यात्रा और सांस्कृतिक समागम से सजी रहेगी रामलीला
- रामलीला महोत्सव के दौरान न केवल धार्मिक मंचन हो रहा है, बल्कि उत्तराखंड की पारंपरिक संस्कृति का भी प्रदर्शन किया जा रहा है।
- भजन संध्या, लोकगीत, और नृत्य प्रस्तुतियों के साथ कलाकार प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को दर्शकों के समक्ष ला रहे हैं।
- 2 अक्टूबर को रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतलों के दहन का कार्यक्रम आकर्षण का मुख्य केंद्र रहेगा।
- इसके साथ भव्य कलश यात्रा और मेले का भी आयोजन किया जा रहा है।
संस्कृति, आस्था और तकनीक का अनोखा संगम
रामलीला महोत्सव 2025 केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह आयोजन आस्था, इतिहास और आधुनिकता का संगम बनकर उभर रहा है।
यह पहल आने वाली पीढ़ियों को न केवल अपने इतिहास से जोड़ने का माध्यम बनेगी, बल्कि सांस्कृतिक जागरूकता भी बढ़ाएगी।
