ढाका | 18 अक्टूबर 2025:
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार द्वारा लोकतांत्रिक सुधारों के वादे के साथ तैयार ‘जुलाई चार्टर’ को भले ही प्रमुख राजनीतिक दलों का समर्थन मिल गया हो, लेकिन युवा आंदोलनकारियों और नवगठित ‘नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी)’ के तीव्र विरोध ने सरकार का जश्न फीका कर दिया। हालात इतने बिगड़े कि प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन परिसर में घुसकर जमकर विरोध प्रदर्शन किया, सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी की और सुरक्षाबलों से भिड़ गए।
‘जुलाई राष्ट्रीय चार्टर’ वह दस्तावेज है जो राष्ट्रीय विद्रोह (जुलाई 2024) के बाद लोकतांत्रिक, कानूनी और संवैधानिक सुधारों का खाका पेश करता है।
यह चार्टर पूर्व प्रधानमंत्री हसीना की सत्ता से विदाई के बाद बनी यूनुस सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय सहमति आयोग की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था।
इस पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (खालिदा जिया) और 8 सहयोगी दलों ने हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन एनसीपी और जमात-ए-इस्लामी ने समर्थन नहीं दिया है।
शुक्रवार सुबह से ही संसद भवन के बाहर हजारों की संख्या में युवा प्रदर्शनकारी इकट्ठा हो गए।
इनमें से कई खुद को हसीना शासन के खिलाफ विद्रोह में भाग लेने वाले “क्रांतिकारी” बता रहे थे।
इनका आरोप था कि जुलाई चार्टर में उनके बलिदानों और मांगों को नजरअंदाज़ किया गया है।
हंगामा तब बढ़ा जब भीड़ ने संसद भवन का मुख्य गेट फांद लिया और परिसर में प्रवेश कर लिया।
इसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज, आंसू गैस और तेज आवाज वाले ग्रेनेड का प्रयोग करना पड़ा।
बवाल के बीच अंतरिम प्रधानमंत्री यूनुस ने संसद भवन के बाहर एकत्र जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा:
“जुलाई चार्टर पर हस्ताक्षर का अर्थ है कि एक नया बांग्लादेश आकार ले रहा है। हम बर्बरता से निकलकर अब एक सभ्य समाज की ओर बढ़ चुके हैं।”
उन्होंने सभी दलों और जनता से शांति और सहयोग बनाए रखने की अपील की।
यूनुस सरकार ने घोषणा की है कि अगला आम चुनाव फरवरी 2026 में कराया जाएगा, रमज़ान शुरू होने से पहले।
लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों और विपक्षी पार्टियों का सवाल है:
क्या हसीना की अवामी लीग और उसके सहयोगी दलों की गैर-मौजूदगी में यह चुनाव ‘समावेशी’ और ‘वैध’ होगा?
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना, जिन्हें पिछले साल भारी विरोध के बाद सत्ता से बेदखल किया गया था, भारत में निर्वासन में हैं।
उन पर मानवता के विरुद्ध अपराधों के गंभीर आरोप हैं और उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, जुलाई 2024 के विद्रोह में लगभग 1,400 लोगों की जान गई थी।
बांग्लादेश एक राजनीतिक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, जहां एक ओर लोकतंत्र की ओर बढ़ने की कवायद है, वहीं दूसरी ओर युवाओं की नाराज़गी और जन असंतोष सरकार के दावों पर सवाल खड़े कर रहा है।
जुलाई चार्टर को लेकर अभी भी असहमति का माहौल है और यदि समावेशी दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया, तो आगामी चुनाव संवैधानिक संकट को और गहरा सकते हैं।
