लखनऊ।
गर्भावस्था हर महिला के जीवन का सबसे खास समय होता है, लेकिन इस दौरान अगर ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाए तो यह खुशी चिंता में बदल सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलाओं के शरीर में इंसुलिन हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बन पाता, जिससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। इसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है।
यह स्थिति मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। मां को थकान, अधिक प्यास लगना, बार-बार पेशाब आना, धुंधली नज़र और सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। वहीं बच्चे में अधिक वजन, समय से पहले जन्म या जन्म के बाद शुगर लेवल असामान्य होने का खतरा रहता है।
स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार, जेस्टेशनल डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए संतुलित डाइट और नियमित व्यायाम सबसे असरदार उपाय हैं।
कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट जैसे ब्राउन राइस, ओट्स, साबुत अनाज की रोटी और दालें खाने से ब्लड शुगर स्थिर रहता है। भोजन में प्रोटीन (टोफू, पनीर, अंडा, चिकन या मछली) और हेल्दी फैट (बादाम, अखरोट, जैतून तेल) शामिल करने की भी सलाह दी जाती है।
महिलाओं को दिनभर में छोटे-छोटे मील कई बार लेने चाहिए। मीठे और प्रोसेस्ड फूड जैसे कोल्ड ड्रिंक, मिठाई या पैकेज्ड जूस से दूरी बनाना जरूरी है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रेगनेंसी के दौरान रोजाना 20–30 मिनट की हल्की वॉक या योग ब्लड शुगर को कम करने में मदद करता है। हालांकि, किसी भी व्यायाम से पहले डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।
गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से ब्लड शुगर जांच करवाते रहना चाहिए। इससे समय रहते किसी भी बदलाव का पता लगाया जा सकता है और सही उपचार शुरू किया जा सकता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज कोई स्थायी बीमारी नहीं है, लेकिन अगर ध्यान न दिया जाए तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरा बन सकती है। संतुलित आहार, नियमित जांच और सक्रिय जीवनशैली से इसे पूरी तरह कंट्रोल में रखा जा सकता है।
