नई दिल्ली, 10 नवंबर: आरएसएस के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कांग्रेस नेताओं द्वारा आरएसएस पर बिना रजिस्ट्रेशन काम करने का आरोप लगाने के बीच अपने संगठन की स्थिति स्पष्ट की।
भागवत ने कहा कि आरएसएस को व्यक्तियों के संगठन के रूप में मान्यता प्राप्त है। उन्होंने बताया कि संगठन की स्थापना 1925 में हुई थी और इसे तीन बार प्रतिबंधित किया गया। “अगर हमारा अस्तित्व नहीं था, तो किस पर प्रतिबंध लगाया गया?” भागवत ने कहा। उन्होंने यह भी कहा कि आयकर विभाग और अदालतों ने आरएसएस को व्यक्तियों का संगठन मान्यता दी है और इसे आयकर से छूट भी दी गई है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और उनके बेटे प्रियांक खरगे ने हाल में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने और सरकारी संस्थानों में इसकी गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की थी। इस पर भागवत ने कहा कि आरएसएस किसी एक पार्टी से विशेष लगाव नहीं रखता और राजनीति से दूर है। उन्होंने जोर देकर कहा, “हम वोट की राजनीति, समकालीन राजनीति और चुनावी राजनीति में भाग नहीं लेते। संघ का कार्य समाज को एकजुट करना है और राजनीति स्वभाव से ही विभाजनकारी होती है।”
भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि संघ अपने सदस्यों को जाति या धर्म के आधार पर वर्गीकृत नहीं करता। संघ में किसी ब्राह्मण, किसी अन्य जाति, मुसलमान या ईसाई को अलग तरीके से अनुमति नहीं है, बल्कि वे अपनी अलग पहचान को बाहर रखते हुए संघ में शामिल हो सकते हैं।
उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर निर्माण आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि संघ ने स्वयंसेवकों के माध्यम से इसका समर्थन किया। भागवत ने बताया कि संगठन किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करता, बल्कि राष्ट्रहित से जुड़ी नीतियों का समर्थन करता है।
पाकिस्तान के संदर्भ में उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश को यदि अपने रवैये में सुधार नहीं करता, तो भारत को उसे करारा जवाब देना होगा। “हमें उसे हर बार, हर हाल में हराना होगा, ताकि उसे हमेशा पछतावा हो,” उन्होंने कहा।
भागवत ने यह भी कहा कि आरएसएस सभी समुदायों का स्वागत करता है, बशर्ते वे खुद को भारत माता के पुत्र और व्यापक हिंदू समाज का हिस्सा मानें।
