आज के समय में तलाक के मामलों में अक्सर गुजारा भत्ता (एलिमनी) और संपत्ति के दावों को लेकर लंबी कानूनी लड़ाइयाँ चलती हैं। कई बार समझौते की प्रक्रिया वर्षों तक अटक जाती है। लेकिन गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने आया एक मामला इस सामान्य प्रवृत्ति के बिल्कुल विपरीत था, जिसे खुद कोर्ट ने “दुर्लभ और सराहनीय” करार दिया।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार यह मामला जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और के.वी. विश्वनाथन की बेंच के सामने आया था। सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पेश वकील ने बताया कि उनकी मुवक्किल
किसी भी तरह का गुजारा भत्ता
या एलिमनी
नहीं चाहती हैं।
इतना ही नहीं, महिला ने शादी के समय सास की ओर से मिले सोने के कंगन वापस करने की इच्छा भी जताई।
पहले बेंच को गलतफहमी हुई कि महिला अपना स्त्रीधन वापस मांग रही हैं, लेकिन जब स्पष्ट किया गया कि पत्नी स्वयं कंगन वापस कर रही है, तो जस्टिस पारदीवाला मुस्कुरा उठे।
उन्होंने कहा,
“यह उन बहुत दुर्लभ मामलों में से है, जिसमें किसी भी तरह का लेन-देन नहीं हुआ। हम आपकी सराहना करते हैं। अतीत को भूलिए और खुशहाल जीवन बिताइए।”
बेंच ने इसे आपसी सहमति से हुआ अद्भुत और शांतिपूर्ण समझौता बताया।
सुनवाई के दौरान महिला वीडियो कॉल के माध्यम से कोर्ट से जुड़ी थीं। परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने
अनुच्छेद 142
के तहत अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए दोनों के विवाह संबंध को समाप्त करने का आदेश दे दिया।
क्यों है यह मामला खास?
- बिना किसी एलिमनी या भत्ते की मांग
- शादी में मिले कंगन वापस करके प्रयास
- दोनों पक्षों का स्वेच्छा से समझौता
आज की परिस्थितियों में, जब तलाक के मामलों में अक्सर आरोप–प्रत्यारोप और आर्थिक विवाद प्रमुख हो जाते हैं, यह केस संवेदनशीलता, परिपक्वता और आपसी सम्मान का एक अनोखा उदाहरण बनकर सामने आया है।
