राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने देश की जनसंख्या नीति पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि हिंदू परिवारों को कम से कम तीन बच्चों का लक्ष्य रखना चाहिए, ताकि आने वाले समय में समाज का अस्तित्व बना रह सके।
भागवत ने यह बात विज्ञान भवन में आयोजित संघ के शताब्दी वर्ष समारोह के अंतिम दिन कही, जहां तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम के दौरान वे लोगों के सवालों का जवाब दे रहे थे।
उनका कहना था कि दुनिया के कई देश तीन बच्चों की नीति की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि दो से कम औसत जन्मदर होने पर समाज धीरे-धीरे खत्म होने लगता है।
“देश की आबादी हमारे लिए बोझ भी है और अवसर भी। हमें ऐसा संतुलन चाहिए, जो जनसंख्या को न बढ़ाए, लेकिन आवश्यक संख्या भी बनी रहे,” उन्होंने कहा।
भागवत ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में सभी धर्मों और समुदायों की जन्मदर में गिरावट आई है, मगर हिंदू समाज में यह गिरावट सबसे तेज़ है, जो चिंताजनक है। उन्होंने वैज्ञानिक और सामाजिक शोधों का हवाला देते हुए कहा कि तीन बच्चों वाले परिवारों में मानसिक और सामाजिक संतुलन बेहतर होता है।
🔍 क्या बोले संघ प्रमुख?
- 2.1 बच्चों की औसत दर गणितीय रूप से दो ही मानी जाती है,
लेकिन सामाजिक जीवन में इसका मतलब होता है – कम से कम तीन बच्चे। - बच्चों की संख्या कम होने पर समाज के कुछ वर्ग गायब हो सकते हैं।
- परिवार में तीन बच्चे होने से ईगो की लड़ाई कम होती है, और बच्चे बेहतर सामंजस्य सीखते हैं।
इस बयान के राजनीतिक और सामाजिक मायने निकाले जा रहे हैं। एक ओर सरकार जहां जनसंख्या नियंत्रण पर जोर देती रही है, वहीं संघ प्रमुख का यह बयान नई बहस को जन्म दे सकता है — कि क्या अब भारत को ‘जनसंख्या स्थायित्व’ के बजाय ‘जनसंख्या सुरक्षा’ की तरफ देखना चाहिए?
