नेपाल एक बार फिर राजनीति के तूफान में घिर गया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के अचानक इस्तीफे और पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नेतृत्व में सेना समर्थित अंतरिम सरकार के गठन ने न केवल देश की आंतरिक राजनीति को झकझोर दिया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचा दी है।
इस पूरी प्रक्रिया में अमेरिका की मौन लेकिन संभावित संलिप्तता को लेकर जनता और विश्लेषकों के बीच गंभीर चर्चा छिड़ गई है।
काठमांडू के निवासी दीपक शर्मा, एक टैक्सी चालक, कहते हैं:
“हम आम लोगों को तो टीवी से ही पता चला कि सरकार बदल गई। न आंदोलन देखा, न चुनाव हुए। अब सेना और अदालत मिलकर सरकार चला रही हैं, यह लोकतंत्र है या दिखावा?”
देश के युवा वर्ग, जो सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय है, इस सत्ता परिवर्तन को ‘बाहरी एजेंडा’ का हिस्सा मान रहा है। ट्विटर पर #NepalSovereignty और #ForeignIntervention ट्रेंड कर रहे हैं।
नेपाल का भौगोलिक और रणनीतिक महत्व हमेशा से वैश्विक शक्तियों को आकर्षित करता रहा है। एक ओर चीन की सीमा, दूसरी ओर भारत के साथ ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संबंध — और बीच में एक संवेदनशील लोकतंत्र।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका नेपाल को एक “स्ट्रैटेजिक बफर ज़ोन” के रूप में देखता है, खासकर चीन के खिलाफ। इसी कारण अमेरिका का गुप्त हस्तक्षेप संदेह से परे नहीं माना जा सकता।
इतिहास गवाही देता है
- 1960 के दशक में अमेरिका ने नेपाल में तिब्बती गुरिल्ला बल खड़ा किया, चीन के खिलाफ।
- 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की गुप्त कार्रवाई टीम के दस्तावेजों में नेपाल में अमेरिकी ऑपरेशनों की पुष्टि हुई थी।
- 9/11 के बाद, अमेरिका ने नेपाल में माओवादी विद्रोहियों को आतंकी घोषित कर भारी सैन्य समर्थन देना शुरू किया।
- इन घटनाओं को देखते हुए मौजूदा सत्ता परिवर्तन को सिर्फ “आंतरिक मामला” मानना मुश्किल हो जाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों को सबसे बड़ा आश्चर्य इस बात पर है कि इतनी बड़ी राजनीतिक हलचल के बावजूद किसी भी मुख्यधारा नेपाली नेता की प्रमुख भूमिका नजर नहीं आई।
ना तो कोई सड़कों पर आंदोलन हुआ, ना ही कोई पार्टी खुले तौर पर आगे आई।
यह मौन क्रांति जैसे प्रतीत होती है — जिसे किसी छिपी ताकत ने अंजाम दिया।
नई सरकार के सामने चुनौतियां
- जनता का भरोसा जीतना
- राजनीतिक स्थिरता बहाल करना
- संवैधानिक प्रक्रिया सुनिश्चित करना
- विदेशी हस्तक्षेप की आशंका को दूर करना
सुशीला कार्की के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार को जनता की स्पष्ट वैधता नहीं मिली है। ऐसे में सरकार को पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ कार्य करना होगा।
जहां अमेरिका ने अब तक इस पूरे घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, वहीं भारत ने भी सतर्क चुप्पी साध रखी है। हालांकि, कूटनीतिक सूत्रों का कहना है कि भारत पूरे घटनाक्रम पर करीब से नजर बनाए हुए है।
